शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

सुबह-2 पीने के लिए किशमिश का पानी बनाने के 7 तरीके और उनके फायदे


सुबह सुबह खाली पेट किशमिश का पानी पीने से शरीर की कमजोरी दूर होती है, कब्ज, एसिडिटी, सर्दी, जुकाम, इन्फेक्शन, खून की कमी, शारीरिक कमजोरी और मोटापा दूर होता है | हड्डियां मजबूत बनती है, आंखों की रोशनी तेज होती है, कैंसर और अन्य बीमारियों के साथ-साथ बालों और स्किन की प्रॉब्लम भी दूर होती है और शरीर का इम्यूनिटी सिस्टम ( प्रतिरक्षा प्रणाली ) स्ट्रॉन्ग बनती है | 

किशमिश विटामिंस, मिनरल्स और एनर्जी का भंडार है | इसमें काफी मात्रा में आयरन, पोटेशियम, विटामिन और एंटी ऑक्सीडेंट होते हैं जो शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं |

वैज्ञानिकों के अनुसार किशमिश में विटामिन 'ए', विटामिन 'बी' और विटामिन 'सी', आयरन तथा शरीर को बल प्रदान करने वाले पौष्टिक द्रव्य होते हैं | इसमें पोटेशियम, सेल्यूलोज, शर्करा और कार्बनिक अम्ल है जिसके कारण यह कब्जियत को दूर करती है |

- सुबह-2 पीने के लिए किशमिश का पानी बनाने के 7 तरीके और उनके फायदे -

1) किशमिश रात में भिगोकर रखिए | दूसरे दिन सुबह उसे उसी पानी में मसल का छान लीजिए | इसमें जीरा का पाउडर और शक्कर मिलाकर पीने से पित्त की वजह से होने वाली जलन और उत्तेजना समाप्त होती है | 

2) किशमिश, पित्त पापड़ा और आंवला पांच-पांच ग्राम लेकर रात को आधा पोंड पानी में भिगो दीजिये | सुबह उसे उसी पानी में मसलकर छानकर उसमें 10 ग्राम शक्कर मिलाकर पीने से अमाश्य के पित्त प्रकोप से होने वाले जलन और उत्तेजना मिटती है |

3) किशमिश और सौंफ 20-20 ग्राम लेकर रात में आधा पोंड पानी में भिगोकर रख दीजिए | सुबह उसे उसी पानी में मसलकर छानकर उसमें 10 ग्राम शक्कर मिलाकर थोड़े दिनों तक पीने से एसिडिटी, खट्टी डकारे, उबकाई , खट्टी उल्टी, मुंह के छाले, आमाशय में जलन होना, पेट का भारीपन आदि मिटते है | 

4) 30-40 ग्राम किशमिश को रात में ठंडे पानी में भिगो कर रखिये | उसे उसी में मसल कर छान लीजिए | इसे थोड़े दिनों तक पीने से कब्ज मिटती है |

5) 40 ग्राम किशमिश को रात में ठंडे पानी में भिगोकर रख दीजिए | सुबह उसी पानी में मसलकर छानकर थोड़ा सा जीरे का पाउडर डालकर पीने से पेशाब की गर्मी दूर होती है और पेशाब साफ आता है | 

 6) किशमिश को रात में ठंडे पानी में भिगोकर | सुबह शक्कर डालकर पीने से मृतकछु यानी बूंद-बूंद करके पेशाब आना मिटता है |

7) किशमिश और धनिए को ठंडे पानी में भिगो कर पीने से आधा सीसी यानी आधे सिर का दर्द मिटता है |

ध्यान रखने योग्य बातें -

1) खट्टी या कच्ची किशमिश प्रयोग में नहीं लानी चाहिए |

2) किशमिश को गर्म पानी में धोने के बाद ही प्रयोग में लानी चाहिए ताकि गंदगी या  सूक्षम जंतु दूर हो जाए |

3)  शुगर के मरीजों को चिकित्सक के परामर्श के बिना इस पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिए | 

4) बहुत अधिक मात्रा में किशमिश का सेवन करना नुकसानदायक हो सकता है |





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शनिवार, 24 दिसंबर 2016

खाली पेट काजू और शहद खाने के फायदे

खाली पेट काजू और शहद खाने के फायदे 


सूखे मेवे के रूप में काजू का स्थान सबसे ऊपर आता है और शहद केवल औषधि ही नहीं परंतु दूध की तरह मधुर और पोष्टिक  एक संपूर्ण आहार है | हम आपको खाली पेट काजू और शहद खाने के फायदे के बारे में बताएंगे |

थोड़ा थोड़ा काजू रोज खाया जाए तो इससे न सिर्फ शरीर को ऊर्जा मिलती है बल्कि शरीर को अनेक बीमारियों से छुटकारा भी मिलता है | 

काजू मधुर लघु और धातु वर्धक होता है | इस में प्रोटीन, आयरन और विटामिन  'B'  काफी मात्रा में पाया जाता है | यह वायु, कफ, रसोली, पेट के रोग, ज्वर, पेट के कीड़े, अल्सर, कोढ़, पेचिश, बवासीर के मस्से आदि रोग मिटाता है | यह वातशामक, भूख लगाने वाला और हृदय के लिए हितकर है | हृदय की दुर्बलता एव स्मरण शक्ति की कमजोरी के लिए काजू उत्तम  व लाभदायक है | 

शहद को एक उत्तम खाद्य माना गया है | यह एक औषधि ही नहीं परंतु दूध की तरह मधुर और पोष्टिक एक पूर्ण खाद्य भी है | शहद में मौजूद ग्लूकोस रक्त में शीघ्र ही घुलमिल और पच जाता है | इसे  पचाने के लिए शरीर के अंगों को परिश्रम नहीं करना पड़ता | शहद की शर्करा पचने में अत्यंत हल्की, दाह न करने वाली, उत्तेजक,  पोषक, बलदायक होती है | इसलिए जठराग्नि की मंदता, बुखार, उल्टियां, शुगर, एसिडिटी, जहर, थकावट, हृदय की दुर्बलता आदि में शहद अत्यंत लाभदायक सिद्ध होता है | 
शहद योगवाही है मतलब यह जिस भी औषधि के साथ मिलाया जाता है उसका गुण बढ़ा देता है | 

आगे की जानकारी के लिए देखे :-





ध्यान रखने योग्य बातें - 
1) इस मिश्रण को खाने के बाद 45 मिनट तक कुछ भी ना खाएं |
2) काजू और शहद दोनों अधिक मात्रा में खाना नुकसानदायक हो सकता है | अधिक मात्रा में खाने से रक्त पित्त यानी नकसीर आदि हो सकते हैं | 
3) काजू और शहद दोनों गर्म होते हैं गर्मियों में इनका सेवन नहीं करना चाहिए |

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बुधवार, 21 दिसंबर 2016

मूली व मूली के पत्तों के फायदे - पाचन क्रिया से सम्बंधित बीमारिया, बवासी...

मूर्ति अत्यंत प्रसिद्ध है और भारत में सभी जगह पर होती है | मूली का उपयोग प्राचीन काल से होता रहा है | मूली विशेषकर सदियों की ऋतु में होती है | कुछ स्थानों में यह सभी  ऋतुओं में उपलब्ध होती है | मूली कच्ची खाई जाती है | मूली के पत्तों का साग भी बनता है | सुकोमल मूली का आचार और रायता बनता है | 

वैज्ञानिकों के अनुसार मूली में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन होते हैं | इसमें विटामिन 'ए', विटामिन 'सी', पोटेशियम और सूक्ष्म मात्रा में तांबा भी होता है |

जठराग्नि का मंद होना, खाने में अरुचि, पुरानी कब्ज, बवासीर, अफारा, पेशाब के रोग, किडनी और पित्त की थैली की पथरी, हिचकी, सूजन आदि रोगों में मूली लाभदायक है|

भोजन के मध्य में कच्ची मूली खाने से खाने में रूचि बढ़ती है | कोमल मूली का कचूमर भोजन के साथ खाने से जठराग्नि तेज होती है | मूली में ज्वर नाशक गुण होते हैं |

शीतकाल में मूली दीपन, पाचन और पोषण करने वाली है | मूली के पत्ते अधिक मात्रा में खाने से पेशाब और दस्त साफ आते हैं | बवासीर के रोगी को मूली के पत्ते तथा इसका रस देने से फायदा होता है | मूली की अपेक्षा उसके पत्तों के रस में ज्यादा गुण होते हैं |


मूली के पत्ते पाचन में हल्के रुचि उत्पन्न करने वाले और गरम होते हैं  | परंतु घी में इनकी सब्जी बनाकर खाने से ये गुणकारी हो जाते हैं | 

मूली के पत्तों का रस मूत्रल,  सारक एवं पथरी और रक्त पित्त का नाश करता है | 

कोमल मूली में शक्कर मिलाकर खाने से अथवा इसके पत्तों के रस में शक्कर मिलाकर पीने से अम्लपित्त मिटता है |

मूली के रस में नींबू का रस मिलाकर पीने से भोजन के बाद पेट में होने वाला दर्द या गैस मिटती है | 

कोमल मूली के काढ़े में पीपल का चूर्ण मिलाकर पीने से अग्नि प्रदीप्त होता है एव अपचजन्य उल्टी या दस्त बंद होते हैं |

मूली के पत्तों का 25 से 50 ग्राम रस पिलाने से सूजन जल्दी उतर जाती है | 

मूली और मूली के पत्तों को सरसों के तेल में भूनकर भुर्जी बना लें | इसे खाने से जिगर और गुर्दे के सभी रोग ठीक हो जाते हैं | 

मूली के टुकडे और बराबर मात्रा में जिमीकंद के टुकड़े कांजी में डालकर 1 सप्ताह रखें | फिर इनको खाने से बवासीर ठीक हो जाती है | 

एक कप मूली के रस में एक चम्मच अदरक और नींबू का रस डालकर पीने से अरुचि भूख में कमी पेट फूलना कब्ज और पेट की बीमारियां ठीक हो जाती है | 

खाली पेट मूली खाने से छाती में दाह होता है और पित्त उत्तेजित होता है | शरद ऋतु में भी मूली का सेवन हितावह नहीं है |







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बुधवार, 14 दिसंबर 2016

लहसुन वाले दूध के चमत्कारी फायदे


लहसुन वात, पित्त और कफ से उत्पन्न होने वाले अधिकांश रोगों को मिटाता है लहसुन शरीर के इम्यून सिस्टम को बढ़ाता है और शरीर को निरोग रखने में मदद करता है | लहसुन में में मौजूद Allyl Sulphide द्रव्य ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है | 

लहसुन पोष्टिक, वीर्य को बढ़ाने वाला, हड्डियों के लिए लाभदायक, गले के लिए हितकारी, पित्त व रक्त को बढ़ाने वाला, बुद्धि व आंखों के लिए हितकारी, दिल की बीमारियों में लाभकारी, कब्ज, खाने में अरुचि, खांसी, सूजन, बवासीर, कुष्ठ रोग, पेट के कीड़े, कफ आदि बीमारियों में लाभदायक होता है|

दूध को शास्त्रों ने पृथ्वीलोक का अमृत कहा है | दूध एक संपूर्ण आहार है जिसमें शरीर के लिए आवश्यक प्रोटीन और विटामिंस मौजूद होते हैं | औषधि व पथ्य के रूप में गाय का दूध सर्वश्रेष्ठ है | अनेक रोगों को Heal करने के लिए इसका उपयोग होता है | 


दूध दिल की बीमारी, मानसिक बीमारी, बुखार, बवासीर, रक्तपित्त, योनि रोग आदि रोगों में हितकारी है | यह बल प्रदान करने वाला, वीर्य बढ़ाने वाला, बुद्धिवर्धक, सदा जवान रखने वाला, आयु बढ़ाने वाला, वायु और पित्त को नष्ट करने वाला होता है |

How to Make
1) 2-3 लहसुन की कलियां लीजिए उन्हें हल्का सा कूट लीजिये | 

2) एक गिलास दूध में एक गिलास पानी मिलाकर उसमें कुटी हुई लहसुन की कलियां मिला लीजिए | उसके बाद इस मिश्रण को उबाल ले | 

3) तब तक उबालें जब तक यह मिश्रण एक गिलास नहीं रह जाता मतलब जब तक दूध में मिलाया गया पानी जल कर उड़ ना जाए | 

 4) इसके बाद इसे छानकर दूध को अलग कर लीजिए |

5)     इसमें स्वादानुसार चीनी मिला ले 

6) आपका लहसुन वाला दूध तैयार है | 

इस प्रोसेस में लहसुन के गुण दूध में अच्छे से मिल जाएंगे मिल जाते हैं |










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मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

दूध को उबालना क्यों चाहिए ?

प्राचीन काल से दूध मनुष्य का प्रिय पेय रहा है | दूध को शास्त्रों ने पृथ्वीलोक का अमृत कहा है | विशेषत: इसीलिए दूध रसायन जीवनी है | अतः यह शरीर की रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ा कर शरीर को सदा रोग मुक्त रखता है | 
दूध में विटामिन सी को छोड़कर शरीर के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व, विटामिन होने से दूध एक पूर्ण आहार है | 

सभी प्रकार के दूध में माता का दूध सर्वोत्तम गिना जाता है | माता के दूध के बाद दूसरे क्रम में गाय का दूध है | बीमार व्यक्ति के लिए गाय का दूध सर्वोतम खाद्य है | औषधि एवं पथ्य के रूप में भी गाय का दूध सर्वश्रेष्ठ है | अनेक रोगों में इसका उपयोग होता है अतः सब प्राणियों के दूध में गाय का दूध श्रेष्ठ माना जाता है | 

सामान्यता दूध सभी के लिए अनुकूल रहता है तथापि गैस  या मंद पाचन की शिकायत वालों को सौंफ, इलायची, पीपलामूल, दालचीनी जैसे पाचक मसाले डालकर उबाला हुआ दूध लेना चाहिए | थोड़ी सी पीपर या सौंठ डालने से वह अग्नि प्रदीप्त तथा वातहर बनता है | तथापि कमजोर या रोगी मनुष्य को दिया जाने वाला दूध ज्यादा उबाल कर काढ़ा ना बनाये | यदपि दूध को ज्यादा उबालने से उसके पोषक तत्व कम हो जाते हैं और दूध गरिष्ठ हो जाता है, फिर भी उसकी वायु प्रकृति को कम करने के लिए और उसको जंतु रहित करने के लिए उसे उबालना हितावह रहता है | 

छोटे बच्चों तथा मंद पाचन शक्ति वालों को दूध देना हो तो उसमें तीसरे हिस्से का पानी मिला कर गर्म कर के उपयोग में लेना चाहिए | दूध में आधा पानी मिलाकर पानी जल जाए तथा केवल दूध बाकी रह जाए इस प्रकार उबाला हुआ दूध अधिक  पथ्य गिना जाता है | 

Ajwain in Hindi || रोज सुबह पी लें अजवाइन का पानी, तेजी से कम होगी पेट की चर्बी


दुहने के बाद, दो-तीन घंटे बीत जाने पर ठंडा पड़ा हुआ दूध त्रिदोष कारक होता है | दूध ताजा हो तो उसे गर्म करने की जरूरत नहीं होती अन्यथा दूध को ठीक से गर्म किए बिना उपयोग में ना ले | बासी या लंबे समय तक फ्रिज में रखा हुआ दूध पचने में भारी होता है और उसके गुणों का संपूर्ण लाभ नहीं मिलता, दूध में सूक्ष्म जंतु उत्पन्न हो जाते हैं इसलिए दूध को गर्म करके हिफाजत से रखें और उसका उपयोग करें |

Ajwain ke fayde || अजवाइन खाने के फायदे और नुकसान || अजवाइन के फायदे || 13 फायदे


अधिक जानकारी के लिए " दूध को उबालना चाहिए या नहीं"  विडियो देखे धन्यवाद 
https://www.youtube.com/watch?v=oJapniumdN0




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रविवार, 11 दिसंबर 2016

शरीर के अंदर की हड्डिया और उनकी जानकारी

दोस्तों अगर हम शरीर भर की त्वचा, मांस, चर्बी, मांसपेशियों आदि काटकर निकाल दें तो हड्डियों का एक पिंजर की शेष रह जाएगा | इस शरीर या पिंजर में 206 हड्डियां होती है परंतु नवजात शिशु में 350 हड्डियां होती हैं | जो जुड़ते जुड़ते जवान होने तक 206 रह जाती है | 

लंबी, चौड़ी, गोल, पतली, मोटी, छोटी, बड़ी सब आपस में स्थान-स्थान पर जुड़ी हुई है | वास्तव में यह सब अलग अलग होती है, जुड़ी हुई होती है या तो स्वयं अपने आप के जोड़ों से या मांस की पट्टियों से | 

किसी किसी की हड्डियां बहुत मजबूत होती है | जो अपने ऊपर से हाथी तक निकल जाने पर भी Damage नहीं होती | परंतु कुछ लोगों की हड्डियां इतनी कमजोर होती है कि जरा से झटके या चारपाई आदि के ऊपर से गिरने में ही टूट जाती है | उनकी मजबूती भोजन पर निर्भर करती है | 

शरीर का पंजर ( Skeleton) तीन भागों में बांटा जा सकता है पहला खोपड़ी - जिसके अंदर समस्त शरीर का संचालक ( राजा ) मस्तिष्क होता है | खोपड़ी के सामने की ओर दो गड्ढे में आंखें होती है | 

खोपड़ी की हड्डियां आपस में एक कमान का रूप लिए एक दूसरे से सटी होकर एक बक्से का रुप ले लेती है जिसमें मस्तिष्क सुरक्षित रहता है | 

दूसरा धड़ - जिसमें फेफड़े हृदय यकृत आदि मुख्य अंग सुरक्षित रहते हैं |

तीसरी बाहें और टांगें होती हैं |

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मासपेशियो ( Muscles ) का परदर्शन

त्वचा के नीचे चर्बी और चर्बी के नीचे मांसपेशियां होती है | जो व्यायाम करने वाले व्यक्ति के शरीर में सपष्ट दिखाई देती है | 

मांसपेशियां यानी मसल्स शरीर के अंदर होने वाली गतिविधियों में सहायक होती है | शरीर का बल इनकी मजबूती पर निर्भर करता है  | यह शरीर की हड्डियों को बांधे रखती है और शरीर के हिलने डुलने में बहुत सहायक होती है | 

इन मांसपेशियों का अलग-अलग देशों में राष्ट्रीय प्रदर्शन भी होता है और जिसका शरीर अधिक सुगठित दिखाई देता है उसको श्री या मिस्टर की उपाधि देकर मान्यता दी जाती है |

बलवान मनुष्य की मांसपेशियां बहुत बड़ी और मोटी होती है जो मारने को मार सकने की क्षमता रखती हैं  | वयायाम और मालिश के जरिए अपनी मांसपेशियों को सुदृढ़ कर सकते हैं |

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शनिवार, 10 दिसंबर 2016

क्या चर्बी ( FAT ) जरुरी है ?

त्वचा के नीचे चर्बी (FAT) होती है जो शरीर के गड्ढों को भरकर सुंदर बनाती है | जिनमें चर्बी नहीं होती वह देखने कितने दुर्बल और बुरे मालूम होते है | 
चर्बी अधिक होने वाले होने से भी आदमी भद्दा मालूम होता है | चर्बी एक ऐसा पदार्थ है जो शरीर की गर्मी को बाहर जाने से रोकती है और बाहर की ठंड को अंदर आने से रोकती है | यह शक्ति का संचार भी करती है |
इसे वास्तव में शरीर का इंधन कहा जाता है | जब मनुष्य को भोजन नहीं मिलता तो यही चर्बी पिघल-पिघल कर शरीर की मशीन को चलाने में भोजन का काम करती है | 
जिस मनुष्य को शुद्ध वायु नहीं मिल पाती, बैठकर काम करना पड़ता है तथा अधिक चलने फिरने का या शारीरिक व्यायाम करने का अवसर नहीं मिलता उस की चर्बी तथा श्वेतसार ( जो वह भोजन द्वारा प्राप्त करता है ) शक्ति में परिवर्तन ना होकर त्वचा के नीचे जमा होने लगता है तथा शरीर को मोटा भद्दा और निष्क्रिय बना देता है |  
यही चर्बी या FAT है | हर मनुष्य में चर्बी होना आवश्यक है मगर ज्यादा चर्बी होने से मनुष्य भद्दा, मोटा और रोगी बन जाता है |

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कुछ लोग गोर और कुछ लोग काले क्यों ? हमें त्वचा की साफ सफाई क्यों करनी चाहिए ?


त्वचा का शरीर के अंदर सब वस्तुओं को ढकती है और शरीर के ताप को समान अवस्था में रखती है | साथ ही साथ हमारे शरीर पर होने वाले कीटाणु और जीवाणुओं के बाहरी आक्रमण से भी शरीर का बचाव करती है |

यदि बाहर से शरीर में अधिक गर्मी घुसने लगती है तो त्वचा पर पसीना आ जाता है | शरीर को कुछ शीतलता मिलती है | और जब बाहर से अधिक सर्दी मिलती है तो त्वचा सिकुड़कर मोटी हो जाती है, शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और शरीर के अंदर के अवयव बाहर की ठंड से बच जाते हैं  | 

त्वचा की कई तहे होती हैं | त्वचा की बाहर की त्वचा कुछ कड़ी और मोटी होती है | त्वचा के नीचे रंग के कण ( पिगमेंट ) होते हैं जो ताप से शरीर की रक्षा करते हैं | जिन देशों में गर्मी अधिक पड़ती है, वहां यह कण शरीर की रक्षा हेतु अधिक होते हैं | जिससे मनुष्य का रंग काला पड़ जाता है जैसे अफ्रीका देशों में मनुष्य अधिक काले होते हैं |  जिन देशों में ठंड पड़ती है वहां यह कण बहुत कम या बिल्कुल नहीं होते जैसे युरोप अमरीका आदि के निवासी अधिक या कम गोरे होते हैं | 

ऊपरी त्वचा के नीचे असली त्वचा होती है जिसमें दो प्रकार की छोटी-छोटी  ग्रंथिया होती हैं | एक में से पसीना निकलता है जिसके द्वारा रक्त के अंदर के कुछ विकार बाहर निकल जाते हैं | दूसरे में से चिकनाई निकलती है जो बालों व त्वचा को नर्म रखती है | ऊपरी त्वचा में करोड़ों छोटे छोटे छिद्र होते हैं जिनको पोर्स या मुसाम कहते हैं | यदि यह छिद्र कई बार मेल के कारण बंद हो जाते हैं क्योंकि शरीर के अंदर की चिकनाई बाहर निकलती है और उस पर बाहर की धूल जम जाती है | छिद्रों के बंद होने से अंदर का विष नहीं निकल पाता और शरीर रोगी हो जाता है | इस प्रकार इस कारण शरीर की बाहरी सफाई अनिवार्य रूप से करनी चाहिए |




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शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

शरीर का ताप

प्रकृति की सारी रचनाओ में शरीर की 'रचना' एक बड़ा कठिन, जटिल किंतु बहुत सुंदर विषय है | यह एक बड़ा भारी कल (मशीन) है | जिस को चलाने वाली एक शक्ति इसमें रहती है | 

इस शरीर को  पूरी तरह से ना सही तो इसका साधारण ज्ञान प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है | और विशेषकर तब जब हम चाहें कि हमारी यह मशीन  (शरीरबहुत लंबी अवस्था तक चलती रहे | 

हमारे देश में औसत आयु केवल 60 वर्ष है | जबकि अन्य देशों में 80 वर्ष तक है | इसका कारण यह है कि वहां के मनुष्य को इस मशीन (शरीर) को चलाना आता है और हमें नहीं | 

आप किसी भी मनुष्य को छुए तो उसमें कुछ ताप अवश्य प्रतीत होता है और यही ताप सारी मशीन (शरीर) को चलाने के लिए आवश्यक है | कभी यह ताप बढ़ भी जाता है और कभी घट भी जाता है | यह प्रत्येक व्यक्ति के भोजन या रोग पर निर्भर है | साधारण स्वस्थ अवस्था में मनुष्य के मुंह के अंदर का आप 98.6 डिग्री  फॉरेनहाइट और बगल का 97.6 डिग्री फारेनहाइट होना चाहिए |

शरीर रुपी मशीन के चलते रहने के लिए आवश्यक वस्तुए

प्रकृति की सारी रचना में शरीर की रचना एक बड़ा कठिन, जटिल किंतु बहुत सुंदर विषय है | यह एक बड़ी भारी मशीन है जिस को चलाने के लिए एक शक्ति इस में रहती है | इस मशीन को चलाने के लिए आवश्यक है संतुलित भोजन, जल और वायु |

Video on this Topic :-
https://www.youtube.com/watch?v=pn2gzQYHlYI&t=57s


जो कुछ भी हम खाते हैं हम उसको भोजन कहते हैं एक साधारण भ्रम जो जनता में वर्षों से फैला हुआ है लोगों की शरीर को स्वस्थ व बलिष्ठ बनाने के लिए मूल्यवान भोजन की आवश्यकता होती है | इस विचार में कदापि भी सत्यता नहीं है | भोजन के ज्ञान से निर्धन से निर्धन मनुष्य उसको पोषक तथा बलवर्धक बना सकता है और भोजन को अज्ञानता से धनवान से धनवान मनुष्य विष के समान बना सकता है |सत्यता इस बात पर है कि उचित समय पर उचित मात्रा में उचित रुप में निश्चित होकर खाया हुआ भोजन सदा ही लाभदायक रहता है |

यदि निराहार बगैर भोजन के रहकर मनुष्य 20 दिन तक जीवित रह सकता है, तो निर्जल व निराहार रहकर केवल 5 दिन ही जीवित रह सकता है |
कुछ भी हो जल शरीर का एक अति आवश्यक अवयव है | पानी शरीर के भार का 66 पतिशत होता है | पानी के बिना जीवित रहना दुर्लभ है | सादा शीतल जल ही शरीर के लिए सदा लाभदायक होता है | बर्फ मिला पानी हानिकारक होता है | दिन भर में मनुष्य को लगभग 3 किलो पानी अवश्य इस मशीन रूपी शरीर में डालना चाहिए  | जिस की मात्रा सर्दी गर्मी में कम या ज्यादा की जा सकती है | 
निराहार निर्जल रहकर तो 5 दिन जीवित रहा जा सकता है किंतु वायु के बिना तो एक पल भी जीवित रहना दुर्लभ है | इसी कारण शरीर के लिए वायु अति आवश्यक है | जो मनुष्य बंद कोठरियों में और सकरी गलियों में रहते हैं वे सदैव किसी न किसी रोग से ग्रस्त र


हते हैं | प्रतिदिन 2-4 बार शुद्ध हवा में आकर 2-4 गहरी लंबी सांसे लेने से बहुत से रोगों के होने की संभावना समाप्त हो जाती है | यह वह वस्तु है जो इस शरीर रुपी मशीन के चलते रहने के लिए आवश्यक है  | जिनकी सहायता से यह चलती हुई मशीन महान से महान कार्य कर सकती है |

हमें विश्राम की जरूरत क्यों होती है ?
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गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

क्या काम करते रहने से ही शरीर में शक्ति का संचार होता है ?

जीवन में परिश्रम और विश्राम दोनों साथ-साथ चलने चाहिए तभी सुख शांति प्राप्त हो सकती है | मगर कुछ लोगों का विचार है कि काम करते रहने से ही शरीर में शक्ति का संचार होता है | यह उन लोगों कि बड़ी भारी भूल है | ऐसे लोगों को क्या यह भी बताना पड़ेगा कि काम करने में शक्ति का व्यय ही होता है | संचय या संचार नहीं | 

सच बात तो यह है कि जीवन धारण के लिए जितनी आवश्यकता वायु, जल, भोजन की है ,  विश्राम की आवश्यकता शरीरिक संरक्षण के लिए उनसे किसी भी हालत में कम नहीं है |

यूरोप, अमेरिका आदि देश आज भारत से प्रत्येक क्षेत्र में बढे हुए हैं |  इसके अनेक कारणों में से एक कारण यह भी है कि उन देशो के निवासी सच्चे अर्थ में परिश्रम के बाद विश्राम करना जानते हैं | 

वहां क्या वृद्ध, क्या युवक, क्या स्त्री, क्या पुरुष, क्या धनी और क्या निर्धन, सबने अपने दैनिक कार्यो के लिए समय निर्धारित कर रखा है अर्थात 24 घंटो में 8 घंटा काम करने के लिए और 8 घंटा आराम करने के लिए | वे इस नियम का बड़ी कढ़ाई और इमानदारी से पालन कर रहे हैं जिसका परिणाम जो कुछ भी हो वह संसार के सामने हैं | 

गत महायुद्ध के समय दुश्मन के बमों की बोछार की छांव में भी लन्दन महानगरी के सभी विश्राम स्थल-हाइड पार्क आदि चालू रहे और उनमें हजारों की संख्या में अथक परिश्रम नर-नारी विश्राम के लिए भरे रहते थे | 

इतिहास के जानकारों से यह बात छिपी नहीं है कि वाटर लू के घमासान युद्ध के चन्द ही मिनट पहले महावी


र नेपोलियन पर विजय प्राप्त करने वाला Duke of Wellington घोर परिश्रम के बाद विश्राम कर रहा था | 

मानसिक व शारीरिक कोई काम हो सर्वप्रथम मन से उस काम के करने के लिए प्रवृत्ति होती है | तत्पश्चात मस्तिष्क में विचार उठता है विचार से चेतना की उत्पत्ति होती है जिससे उस काम के करने वाले अंग एवं अवयव में एक प्रकार की उत्तेजना रूपी तरंग का प्रादुर्भाव होता है और  स्नाइयू द्वारा प्राण अथवा शरीर की जीवनी शक्ति मस्तिष्क से तुरंत वहां पहुंचकर उस अंग या अवयव विशेष को गति देती है और हम उस काम को करना आरंभ कर देते हैं | इसी प्रकार मनुष्य कासारा कार्य होता है | 

अब यह बात स्पष्ट हो जाती है कि यदि शारीरिक स्नायु मंडल में परिश्रम द्वारा जीवन शक्ति को केवल व्यय ही करना पड़े और विश्राम द्वारा उस व्यय कि हुई जीवन शक्ति को पुनः प्राप्त करने का मौका न दिया जाए तो शरीर इस अत्याचार को कितने दिनों तक सहन करता रहेगा | निश्चय ऐसी दशा में उसका एक न एक दिन विनाश होना अनिवार्य है |

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हमें विश्राम की जरूरत क्यों होती है ?


शरीर के लिए विश्राम उतना ही आवश्यक है जितना भूख के लिए भोजन | 
यदि कोई मनुष्य समस्त दिन बगैर रुके परिश्रम ही करता रहे तो वह निश्चित है कि वह कुछ ही घंटों में उसका शरीर विश्राम न मिलने के कारण थक कर चूर-चूर हो जाएगा और ऐसे मनुष्य का शरीर बहुत दिनों तक टिक नहीं सकता | 
मनुष्य को मनुष्य निर्जीव रेल गाड़ी के इंजन तक को यदि उचित विश्राम ना मिले, लंबी दौड़ के बाद दूसरे इंजन से वह न बदला जाए, उसके कलपुर्जे नित्य रोजाना साफ न किए जाएं तो वह एक कदम भी आगे नहीं चल सकता |
संसार के जीव जंतु पशु पक्षी आदि सभी परिश्रम के बाद आराम चाहते हैं |
यह सारी सृष्टि भी अपने विनाश काल में एक दिन विश्राम करती है ईसाईयों की धर्म पुस्तक बाइबल में भी इस बात की ओर संकेत है |
 विश्राम के समय मनुष्य के मस्तिष्क और शरीर के सारे अवयव, इंद्रियां स्थिर हो जाते हैं और विश्राम के बाद शरीर में, मस्तिष्क में दुबारा बल और ताजगी का अनुभव होने लगता है परिश्रम से खोई हुई जीवनशक्ति (एनर्जी) को दुबारा अर्जित करने के लिए ही विश्राम की आवश्यकता होती है |
हम जानते हैं कि हमारे शरीर में जो हृदय नाम का एक यंत्र है | वह 24 घंटे में 1,00,000 बार से अधिक ध


क-धक करता है और हमारी 12,000 मील लंबी रक्त वाहिनियों में लगभग 5,000 गैलन खून को दौड़ाता है | पर इस महत्वपूर्ण और कठिन कार्य को वह भी बिना विश्राम लिए नहीं करता और ना कर सकता है | दो 'धक' शब्दों के बीच जो समय होता है वह हृदय के विश्राम करने का समय होता है |
इतने थोड़े से समय में वह विश्राम करके इतनी अपार शक्ति ग्रहण कर लेता है जिसे वह मनुष्य के मरने तक क्रियाशील रहता है | इसलिए विश्राम के समय में विश्राम के संबंध में जो बातें दृदय के लिए सत्य है वही मनुष्य शरीर के प्रत्येक अवयव के लिए भी सत्य है |

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बुधवार, 7 दिसंबर 2016

ऋतु की जलवायु भिन्न-भिन्न, ठंडी की ऋतु के आहार

प्रत्येक ऋतु की जलवायु भिन्न-भिन्न होने से शरीर पर उसका भिन्न-भिन्न असर होता है इसलिए ऋतु के अनुसार आहार में भी आवश्यक परिवर्तन करना 
चाहिए | 
ऐसा करने से ऋतु की ठंडी गर्मी या अन्य असर सहन करने और उनका प्रतिकार करने की शारीरिक शक्ति बनी रहेगी |
ठंडी की ऋतु में जठराग्नि प्रदीप्त होती है अतः आहार के रूप में मधुर तथा स्निग्ध पदार्थों का सेवन करना 
चाहिए | 
शक्ति का संचार करने हेतु शीतकाल में दूध, घी  और पाको रसायनों का अधिक सेवन करें | 
सामान्य घी, गुड, तिल, मूंगफली, हलवा, सुखड़ी, उड़द-पाक आदि खाएं
आवले, बेर, गन्ना, गाजर, टमाटर, बैंगन, मुंगरी, पालक की भाजी और फल खाने चाहिए |  
इनका सेवन करने से शरीर हृष्ट-पुष्ट एवं ताजगीपूर्ण बनेगा |

शनिवार, 5 नवंबर 2016

पुरानी से पुरानी कब्ज दूर करने की ताकतवर घरेलु औषधि | Constipation



पुरानी से पुरानी कब्ज दूर करने की ताकतवर घरेलु औषधि | Constipation



YouTube video link :- https://youtu.be/dMESeshOfRk


कब्ज सब रोगों का मूल है इसलिए पेट को हमेशा साफ रखना चाहिए | आगे बताई गई औषधि के कुछ ही दिनों के सेवन से पुरानी से पुरानी कब्ज दूर हो जाती है | तक़रीबन 15 दिन तक लगातार लेने से पेट बिलकुल शुद्ध और टॉक्सिन्स फ्री हो जाता है |

औषधि बनाने का तरीक़ा :-
छोटी (काली) हरड़ 100 ग्राम देसी घी मैं भून ले | जब हरड़ फूल जाये और धुँआ सा निकलने लगे तब उसे घी से अलग कर ले | उसके बाद 50 ग्राम सोफ (बड़ी) लेकर देसी घी मैं भून ले | और 50 ग्राम सोफ ले कर उसे भुनी हुई सोफ मैं मिला ले | अब पहले भुनी हुई हरड़ को कूटकर मोटा (दरदरा ) चूर्ण बना ले और फिर सोफ को भी इसी तरह कूट ले | इस दरदरे चूर्ण मैं 200 ग्राम देसी घी ( पाचन शक्ति के अनुसार) और 400 ग्राम बुरा या मिश्री मिलाकर किसी कांच के बर्तन मैं सावधनीपूर्वक रख ले | बस दवा तैयार है |

सेवन विधि :-
 इस चूर्ण मैं से १० ग्राम ( २ चम्मच) की मात्रा से नित्य सुबह और शाम गरम दूध के साथ ले और दो घण्टे आगे पीछे कुछ न खाये |

फायदे :-
१) इसके कुछ ही दिनों के सेवन से पुरानी से पुरानी कब्ज दूर हो जाती है | तक़रीबन १५ दिन तक लगातार लेने     से पेट बिलकुल साफ हो जाता है |
२) गैस और आँव मिटती है तथा पेट के कीड़े नष्ट होते है|
३) यह कब्ज को दूर करता है |
४) यह शरीर मैं गैस का नाश करता है |
५) यह बलवीर्य वर्धक रसायन है |
६) यह ह्रदय बलवर्धक है
७) इससे आँखों की रौशनी बढ़ती है
८) इसे सभी मौसमो (ऋतुओ ) मैं लिया जा सकता है 

गुरुवार, 3 नवंबर 2016

तीर्व प्यास, घबराहट, हिचकी, उबकाई को दूर करने का घरेलु नुस्खा

तीर्व प्यास, घबराहट, हिचकी, उबकाई को दूर करने का घरेलु नुस्खा

बुखार और अन्य कारणों से लगने वाली तीर्व प्यास, घबराहट, हिचकी, उबकाई को दूर करने का घरेलु नुस्खा 

1) 25 ग्राम सौंफ को 250 ग्राम पानी मैं भिगो दे | 1 घंटे के बाद उस सौंफ के पानी को एक - एक घूंट पीने से तीर्व प्यास मिटती है

2) बुखार मैं प्यास ना मिटती हो तो मिश्री की डली मुह मैं डाल कर चूंसे

3) निम्बू चूसने या शिकंजवी पीने से कैसी भी प्यास दूर हो जाती है

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